21 साल की उम्र में अकबर इलाहाबादी ने अपने पहले मुशायरे में दो लाइनें कही थीं.
समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का
अकबर ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का
इसके बाद अकबर इलाहाबादी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. क्या आज के नौजवान अकबर इलाहाबादी को पढ़ते हैं?